Saturday, July 3, 2010

जिंदगी - हार या जीत

नमस्ते दोस्तों कैसे हो, उम्मीद है आप सब ठीक होंगे।
जिन्दगी का क्या पता कब क्या हो जाये। एक पल मे सब बदल जाता है। और हम हाथ मलते रह जाते है। क्या होने वाला है इस खबर से अनजान हम अपनी दुनिया मे खोये रहते है। और जब सच सामने आता है तब पता चलता है की हम जिन सपनो मे खोये थी उन की कोई कीमत नही है इस दुनिया मे, हम तब भला क्या कर सकते है जब हम चाह कर भी अपने हालत को बदल नही पाते बस अपनी दुनिया को सपनो को बिखरते हुए देखते रहते है।
जिन्दगी पल-२ नए रंग दिखाती है। और अपने सपनो डूबे हम ये जान ही नहीं पाते की अब कौन सा रंग हम्रारे सामने आने वाला है। हर बदलाव को भगवान की मर्ज़ी मान कर स्वीकार कर लेना क्या सही है? ये एक सवाल आज बहोत बड़ा है। क्या हालत पर हमारा कोई बस नही होता? हम क्या है क्या सिर्फ कठपुतलिया? फिर सोचने लगती हु की अगर हालात पर किसी का भी बस चले तो शायद कोई भी ऐसा कुछ होने न दे जो उन्हें पसंद नही।
पर फिर भी इंसान कोशिश तो कर सकता है। वो तो हमारे हाथ मे है। हालात चाहे जितने खराब हो एक कोशिश ही तो हमारे हाथ मे है। और अगर हम वो भी न करे तो शायद हमे रोने का हक भी नहीं है। क्यों की हमारे पास खुद को सही कहने की कोई वजह नही है। चीजों से भागना मुह छुपाना कहा तक सही है। उन की जिम्मेदारी तो लेनी ही पड़ती है। ये भगवान की मर्ज़ी थी ऐसा कह कर हम अपनी कमज़ोरी को सही साबित तो नही कर सकते।
क्यों नही हम खुद को इतना मजबूत बना पाते की अपने सपनो को हर हालात मे पूरा करने की कोशिश करे। अगर हमरे सपने गलत नही है किसी को नुक्सान नही पंहुचा रहे है तो उन्हें पूरा करने के बारे मे सोचना क्या गलत है। हमे मौका नही मिला ऐसा बहाना क्यों बनाते है हम? हमारे लिए अपने ही शब्दों की कीमत नही है। और दुसरो के शब्दों को पूरा करने चल पड़ते है हम। अरे जो इंसान अपने शब्दों की कीमत नही जानता वो किसी और को क्या महत्व देगा। वो तो सिर्फ एक मजबूरी है जिसे वो निभा रहा है और जैसे ही मौका मिलेगा वो भागने की कोशिश करेगा। पर क्या जिन्दगी मे वो कभी ये नही सोचेगा की उसके फैसले कोई मायने रखते भी है या नहीदुसरो की ऊँगली पकड़ कर कब तक इंसान चल सकता हैएक दिन तो खुद सम्भलना पड़ता हैजिन्दगी बच्चा बने रहने मे ही खतम नही हो जातीइन्सान को बड़ा होना पड़ता है और वो बड़ा तब होता है जब वो सही गलत सोच सकेअपने फैसलों को अहमियत दे सके
भागना किसी समस्या का हल नही हैउसका सामना करोउससे टकरा जाओऔर अगर नही टकरा सकते तो उससे स्वीकार कर के सारी जिन्दगी एक कमजोर इंसान की तरह जीते रहोबड़ी- बाते कहने से इंसान बड़ा नही होता उसकी मजबूती तब पता चलती है जब वो हालात का सामना करता हैवो उससे जितनी समझदारी से सम्भालता है यही बात साबित करती है की आप कितने मजबूत हो। "हो जाये गा।" "ये तो ऐसा ही था। " "मै क्या करता।" ये सब कही कही हमारी कमजोरी को ही दिखाते है
दोस्तों मेरा तो मानना है की हमे इन बातो से बचना चाहिये कही इन सब बातों मे और अपनी कमजोरी मे हम किसी और की जिन्दगी बर्बाद कर देअगर हममे अपने वादों के लिए कोशिश करने की भी शक्ति नही है तो हमे वादा नही करना चाहिये
change को स्वीकार करना चाहिये पर हार कर नहीऔर हर बात को भगवान की मर्ज़ी मान कर चुप नही रहना चाहियेहालात से लड़ कर तो देखो शायद भगवान भी कहता हो की तुम लड़ कर जीतने की भावना अपने मन मे पैदा करोऔर तुम उससे समझ नही पा रहे होभगवान हार मानने का नही हार को जीत मे बदले की शक्ति हैपर वही जहा हम गलत नही है

धन्यवाद्

9 comments:

  1. दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

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  2. एक अच्छी और पठनीय पोस्ट। जारी रखें। शुभकामनाएं !
    -सुभाष नीरव
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  3. खूबसुरत ब्लोग और अच्छा प्रेरक आलेख

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  4. bahut umda kaha aapne.........

    swagat hai apka

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  5. इस नए चिटठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
    ब्लागिंग के अलावा आप इंटरनेट के जरिए विज्ञापन और पाजीटिव खबरें देखकर तथा रोचक क्विज में भाग लेकर अतिरिक्त आमदनी भी कर सकते हैं. इच्छा हो तो यहां पधारें-
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  7. पठनीय.....शुभकामनाएं

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  8. इस दुनिया मे, हम तब भला क्या कर सकते है जब हम चाह कर भी अपने हालत को बदल नही पाते बस अपनी दुनिया को सपनो को बिखरते हुए देखते रहते है।
    ---------लेखन में अनुभव एवं संवेनशीलता का अथाह संगम है. बधाई!
    ========
    तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    =0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

    सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  9. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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